‘ढाई दिन का झोपड़ा’ क्या है ?
अपनी उदारता के कारण कुतुबुद्दीन ऐबक इतना अधिक दान करता था कि उसे ‘लाखबख्श’ (लाखों को देने वाला) नाम से पुकारा गया। फरिश्ता ने लिखा है कि ‘यदि व्यक्ति किसी की दानशीलता की प्रशंसा करते थे, तो उसे अपने युग का ऐबक पुकारते थे।’ इसकी एक उपाधि ‘कुरान ख्वां’ भी थी। ऐबक को साहित्य से अनुराग था और स्थापत्य कला में भी रुचि थी। संरक्षण प्राप्त था। उन्होंने ऐबक को अपने ग्रंथ समर्पित किए थे। हसन निजामी ने ‘ताज-उल-मासिर’ की रचना की। ऐबक ने दिल्ली में ‘कुव्वत-उल-इस्लाम’ और अजमेर में ढाई दिन का झोपड़ा’ नामक मस्जिदों का निर्माण कराया था। उसने दिल्ली में स्थित ‘कुतुबमीनार’ का निर्माण कार्य प्रारंभ किया, जिसे इल्तुतमिश ने पूरा करवाया।