जलवायु परिवर्तन हेतु जिम्मेदार प्राकृतिक कारक
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार जलवायु परिवर्तन का तात्पर्य “तापमान और मौसम के पैटर्न में दीर्घकालिक बदलाव” से है। सूर्य की दैनिक गतिविधि में होने वाला परिवर्तन या बड़े ज्वालामुखी विस्फोट जैसे कारण इस तरह के बदलाव के स्वाभाविक कारण हो सकते हैं। हालांकि 19वीं सदी के मध्य में मानव जनित अनेक गतिविधियों के कारण भी जलवायु परिवर्तन जैसी घटना को बल मिला। जीवाश्म ईंधन जलाने से ग्रीनहाउस गैस का अत्यधिक मात्रा में उत्सर्जन होता है जो पृथ्वी के तापमान को बढ़ाता है।
जलवायु परिवर्तन के लिए जिम्मेदार प्राकृतिक कारक:-
1.सौर कलंक सिद्धांत (सन स्पॉट थ्योरी):- मिलांकोविच के अनुसार सूर्य के प्रकाश मंडल में प्रत्येक 11 से 13 वर्षों के अंतराल में या चक्रीय क्रम में सौर कलंक देखे जाते हैं, जिनकी उपस्थिति से सूर्य के प्रकाशमंडल का सतही तापमान औसत तापमान से लगभग 1400 डिग्री सेल्सियस कम प्राप्त होता है।
2.ऑब्लिक्विटी सिद्धांत (द ऑब्लिक्विटी थ्योरी):- पृथ्वी का अक्षीय झुकाव आज 23½ डिग्री प्राप्त होता है। परंतु यह हमेशा समान नहीं रहता, बल्कि इस झुकाव में कभी-कभी वृद्धि की स्थिति पाई जाती है, जिसे ऑब्लिक्विटी इफेक्ट कहते हैं। ऑब्लिक्विटी की दशा में अक्ष का झुकाव 22.1 डिग्री से 24.5 डिग्री के मध्य घटता और बढ़ता रहता है। झुकाव की कमी की दशा में चुकी उष्णकटिबंधीय क्षेत्र संकुचित हो जाते हैं इसलिए तापमान में भी गिरावट आती है। जबकि झुकाव की वृद्धि की दशा में उष्ण कटिबंधों के विस्तार से पृथ्वी के औसत तापमान में वृद्धि हो जाती है। इसलिए वैश्विक तापमान की स्थिति आती है।
3.इसेंट्रीसिटी प्रभाव:- पृथ्वी अपनी दीर्घवृत्तीय कक्षा में सूर्य के चतुर्दिक एक वर्ष में परिक्रमा पूरा करती है। परंतु यह हमेशा समान नहीं रहती बल्कि कभी तो यह परिक्रमण पथ उपसौर की ओर आता है तो कभी अपसौर की ओर। उपसौर की दशा में निश्चित रूप से अधिक तापमान की प्राप्ति वैश्विक तापन पैदा करेगा, जबकि अपसौर की दशा में तापमान की कमी वैश्विक शीतलन का कारण बनेगी।
4.द वोल्केनिक डस्ट थ्योरी:- ज्वालामुखी विस्फोट के दौरान कार्बन डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, मिथेन जैसी गैसें उत्सर्जित होती हैं, जिनके प्रभाव से वायुमंडलीय तापमान में वृद्धि होती है। परंतु ज्वालामुखीयता के दौरान मुक्त धूल तथा राखकण के बादल सूर्य किरणों की प्रवेश्यता में बाधा पहुंचाते हैं, जिससे निचले वायुमंडल की औसत तापमान में कमी आने लगती है।
इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि जलवायु परिवर्तन संबंधी घटनाक्रम को नकारा नहीं जा सकता। हालांकि घटना के पीछे न केवल प्राकृतिक कारक बल्कि मानवीय कारक भी जिम्मेदार है।