चक्रवातों की परिभाषा एवं उत्पत्ति को प्रभावित करने वाले कारक
चक्रवात से तात्पर्य उस केंद्रीय निम्न दाब से है जिसके परिधि क्षेत्र में क्रमशः पाए जाने वाले उच्च दाब के प्रभाव से पवनें बाह्य परिधि क्षेत्र से केंद्रीय निम्न दाब की ओर कोरियोलिस बल के प्रभाव से चक्रण करती हुई प्रवेश करती है। चक्रवातों में पवनों का यह चक्रण उत्तरी गोलार्ध में वामावर्त दिशा में जबकि दक्षिणी गोलार्ध में दक्षिणावर्त दिशा होता है। चक्रवातों की उत्पत्ति कुछ निश्चित कारकों जैसे- दाब प्रवणता बल, कोरियोलिस बल, तथा अभिकेन्द्रीय त्वरण पर निर्भर करती है। दाब प्रवणता बल के कारण पवनें उच्च दाब से निम्न दाब की ओर संचरित होती हैं।
कोरियोलिस बल के प्रभाव से अभिसरण करती हुई पवनों में विक्षेपण उत्पन्न होता है, जिसके कारण इन पवनों की दिशाओं में चक्राकार परिवर्तन होते हैं। अभिकेन्द्रीय त्वरण के माध्यम से पवनें तीव्र गति से निम्न वायुदाब के केंद्र की ओर अभिसरित होती हैं। इस प्रकार यह कहा जा सकता है, कि उपर्युक्त कारकों की अनुपस्थिति में चक्रवातों का विकास संभव नहीं है, जैसा कि विषुवतीय क्षेत्रों में कोरियोलिस बल की नगण्यता तथा उपोष्ण कटिबंधीय प्रदेशों में प्रति चक्रवाती दशाओं के संदर्भ में देखा जा सकता है।