November 15, 2024
ग्रामीण विकास क्या हैं

ग्रामीण विकास क्या हैं ?

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ग्रामीण विकास क्या हैं ?

पंचायती राज व्यवस्था (73वें संविधान संशोधन) के द्वारा ग्राम पंचायतों को 29 विषय प्रदान किए गए हैं तथा ग्राम पंचायतों के कार्यों को प्रभावी बनाने के लिए निम्नलिखित समितियों का निर्माण किया गया है ।

विकास समिति:- इसका मूल कार्य कृषि, ग्रामीण उद्योग एवं ग्रामीण विकास योजनाओं का निर्माण करना है।

शिक्षा समिति:- इसके द्वारा ग्राम पंचायतें शैक्षणिक कार्यों का प्रबंध करती हैं तथा 73वें संविधान संशोधन, 1993 के बाद प्राथमिक एवं माध्यमिक विद्यालयों पर ग्राम पंचायतों का नियंत्रण स्थापित कर दिया गया है, जिसके द्वारा ग्राम पंचायतें प्राथमिक शिक्षा में भोजन प्रबंध से लेकर छात्रवृत्ति के आवंटन तक विद्यालयों के कार्यों की निगरानी करती हैं।

लोकहित समिति:- इसके द्वारा जन स्वास्थ्य एवं ग्रामीण कार्य से संबंधित कार्यों या मामलों की देखभाल की जाती हैं।

समता समिति:- इसके द्वारा महिलाओं, बच्चों, अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों तथा पिछड़े वर्गों के लोगों के कल्याण के लिए कार्य संपादित होते हैं।

ग्राम सभा के द्वारा विकास की विभिन्न योजनाओं पर चर्चा होती है और ग्राम सभा के द्वारा ही उन लाभार्थियों का चयन होता है, जिन्हें इन योजनाओं का लाभ प्राप्त होगा। उदाहरण के लिए, प्रधानमंत्री आवास योजनाओं का लाभ किन व्यक्तियों को प्राप्त होना चाहिए, इसका निर्धारण ग्राम सभा द्वारा किया जाएगा और मनरेगा के सफलतापूर्वक संचालन में पंचायतों की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। इसके अतिरिक्त ग्रामीण रोजगार एवं विकास की अनेक योजनाओं का निर्माण भी ग्राम पंचायतों के द्वारा किया जाता है। यह उल्लेखनीय है कि ग्राम पंचायतें उपलब्ध वित्तीय संसाधनों के आधार पर योजना का निर्माण करती हैं, इसके पश्चात् योजना को खण्ड स्तर की समिति को संप्रेषित किया जाता है। आलोचकों के अनुसार, ग्राम पंचायतों को अपनी योजनाओं के अनुसार वित्तीय स्रोत प्राप्त नहीं होते, बल्कि उन्हें उपलब्ध वित्तीय संसाधनों के आधार पर योजनाओं का निर्माण करना होता है। ग्राम पंचायतों को अपनी योजनाओं को क्रियान्वित करने के लिए विभिन्न स्रोतों से सहायता प्राप्त होती है, जिसमें केंद्र सरकार एवं राज्य सरकार से भी वित्तीय संसाधन प्राप्त होते हैं। खण्ड स्तर पर भी ग्रामीण विकास के लिए अनेक समितियों का निर्माण किया जाता है। जैसे – वित्त व करारोपण समिति, कृषि उत्पादन, पशुपालन व लघु सिंचाई से संबंधित समिति, शिक्षण व समाज कल्याण से संबंधित समिति, लोक स्वास्थ्य व सफाई कार्य एवं संचार साधनों का निर्माण संबंधित समिति इत्यादि ।

खण्ड स्तर पर योजनाओं के निर्माण में जिला परिषद् के मुख्य नियोजन अधिकारी उनकी सहायता करते हैं तथा खण्ड पंचायत के द्वारा अगले वित्तीय वर्ष के लिए संसाधनों की मांग करने के साथ ग्राम पंचायतों की योजनाओं को समन्वित किया जाता है। योजना निर्माण के पश्चात् इसे प्रवर समिति के समक्ष रखा जाता है, इसके बाद इसे खण्ड समिति की सामान्य समिति के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है। इस बैठक में सदस्य योजना के प्रारूप पर विचार-विमर्श करने के साथ-साथ योजना को अनुशंसित करते हैं। खण्ड स्तर के पश्चात् योजना का प्रारुप जांच व स्वीकृति के लिए जिला परिषद् या जनपद पंचायत को भेजा जाता है, जिसकी स्वीकृति के पश्चात् इसे राज्य सरकार के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है। अतः 73वें संविधान संशोधन, 1993 के बाद भारत में विकेंद्रित नियोजन का व्यावहारिक रुप में प्रयोग हो रहा है। यह ग्रामीण विकास की दिशा में अत्यंत उल्लेखनीय कदम है। पंचायतों में दिया गया आरक्षण सामाजिक न्याय का सबसे प्रभावी तरीका माना जा सकता है, क्योंकि वर्तमान में पिछड़ी जातियों के लोगों, अनुसूचित जातियों, जनजातियों एवं महिलाओं का योगदान ग्रामीण विकास के साथ-साथ स्वयं उनके सशक्तिकरण के लिए महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि ग्रामों में अभी भी जातिगत रुप में सोपानिक समाज (Hierarchical Society) विद्यमान है तथा पितृसत्तात्मक सत्ता का प्रभुत्व है।

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