कृषि नारीकरण को प्रभावित करने वाले कारक बताइए
“कृषि का नारीकरण” शब्द का प्रयोग बदलते श्रम बाजारों का वर्णन करने के लिए किया जाता है, जिसमें पुरुषों के कृषि क्षेत्र से बाहर हो जाने के कारण महिलाओं की भूमिका बढ़ जाती है।
वैश्विक संदर्भ में इसे प्रगतिशील रूप में लिया जाता है, जिसका आशय कृषि के उत्पादन, वितरण, मूल्य संवर्धन में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ाना है।
आर्थिक सर्वेक्षण (2017-18) के अनुसार, कृषि क्षेत्र नारीकरण के दौर से गुजर रहा है। यह क्षेत्र भारत में सभी महिला कर्मचारियों के 80% को रोजगार देता है, जिसमें 33% कृषि मजदूर और 48% स्व-नियोजित किसान हैं।
भारतीय कृषि संकटग्रस्त है, जैसे भूखंड के आकार में गिरावट, खाद्य कीमतों में मुद्रास्फीति, कृषि आय के लिए उत्पादन लागत में सापेक्ष वृद्धि, किसान आत्महत्याओं आदि कृषि संकटों ने ग्रामीण पुरुषों को कृषि के बाहर आजीविका के अवसरों की तलाश में शहरी क्षेत्रों में पलायन करने के लिए मजबूर किया।
ग्रामीण भारत में गरीबी का प्रसार, कृषि के नारीकरण के लिए प्रमुख प्रेरक शक्तियों में से एक रहा है।
शहरी प्रवासन- आर्थिक सर्वेक्षण 2017-18 के अनुसार ग्रामीण से शहरी क्षेत्रों में पुरुषों के प्रवास में वृद्धि के परिणामस्वरूप कृषि का नारीकरण हुआ है।
महिलाओं को कृषक का दर्जा दिया जाना चाहिए, जिससे उन्हें कृषि संबंधित योजनाओं का लाभ मिल सके। क्षमता निर्माण, प्रशिक्षण और ऋण तक पहुंच भारत में कृषि के नारीकरण को सशक्त करने में महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है।