November 14, 2024
कपास की फसल का आर्थिक महत्त्व, भौगोलिक महत्त्व, वानस्पतिक विवरण  By Era of Infology

कपास की फसल का आर्थिक महत्त्व, भौगोलिक महत्त्व, वानस्पतिक विवरण 

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कपास की फसल का आर्थिक महत्त्व, भौगोलिक महत्त्व, वानस्पतिक विवरण 

हम कपास के आर्थिक महत्त्व भौगोलिक महत्त्व वानस्पतिक वितरण की विवेचना निम्न प्रकार से कर सकते हैं।

1.आर्थिक महत्त्व:- कपास विश्व की महत्त्वपूर्ण रेशे वाली फसल है जिस पर पाये जाने वाले बीजों पर एक रेशा पाया जाता है जिसका उपयोग वस्त्र बनाने मढ़ें किया जाता है। इसकी विभिन्न प्रकार की जातियों के पौधों से प्राप्त रेशे की प्रकृति के आधार पर इससे मनुष्यों के लिए कपड़ों व अन्य प्रकार के कपड़ों के लिए धागे तैयार किये जाते हैं। इन्हीं धागों से बुवाई करने के बांद उनकी गुणवत्ता के आधार पर कपड़ा तैयार किया जाता है। प्राप्त रूई से गद्दे, रजाई, तकिये तैयार किये जाते हैं। विभिन्न प्रकार के उत्पादों की पैंकिंग में भी किया जाता है। 20% तक तेल निकलता है जो खाने के काम आता है। खली पशुओं के भोजन के लिए काम आती है।

2.भौगोलिक वितरण:- कपास वस्त्र उद्योग से सम्बन्धित होने के कारण विश्व के लगभग अधिकतर रेशों में उगाये जाते हैं। सम्पूर्ण विश्व में चीन, अमेरिका, भारत, पाकिस्तान, ब्राजील व रूस में उगाये जाते हैं। सम्पूर्ण विश्व में इसकी खेती के अन्तर्गत कुल क्षेत्रफल लगभग 35 मिलियन है. है तथा इसका कुल उत्पादन 21 मिलियन टन है। भारत में कपास की खेती 9 मिलियन/हे. है तथा यहाँ इसका उत्पादन 2.5 मिलियन वेल्स है। 1 वेल्स = 170 किग्रा. रुई।

3.वानस्पतिक विवरण:- कपास पौधा जंगली अवस्था में बहुवर्षीय होता है। खेती की जाने वाली कपास की जातियों के पौधे एक वर्षीय होते हैं। इसकी लम्बाई 1. 5 से 2 मीटर तक होती है। इसका तना सीध बढ़ने वाला होता है। कपास के पौधों में मूसला व जड़े पायी जाती है। जड़ों के 1 मी. गहराई तक जाने वाली मिट्टीय जड़े निकलती हैं इस प्रकार भूमि में जड़ों का एक जाल तन्तु बिछ जाता है। इसकी पत्तियों का रंग हरा होता है। परन्तु कुछ जातियों में गुलाबी रंग की पत्तियाँ पायी जाती है। कपास के पत्तों पर गूलर बनते लगते हैं प्रत्येक गूलर में 5 से 8 तक बीज होते हैं। कपास के रेशे बीजों की वाह्य त्वचा पर निकलते हैं।

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