उल्कापिंड किसे कहते हैं?
टुकड़ों को सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाने वाले पत्थरों के छोटे-छोटे उल्कापिंड कहते हैं। कभी-कभी ये उल्कापिंड पृथ्वी के इतने नजदीक आ जाते हैं कि इनकी प्रवृत्ति पृथ्वी पर गिरने की होती है। इस प्रक्रिया के दौरान वायु के साथ घर्षण होने के कारण ये गर्म होकर जल जाते हैं। फलस्वरूप चमकदार प्रकाश उत्पन्न होता है। कभी-कभी कोई उल्का पूरी तरह जले बिना पृथ्वी पर गिरती है जिससे धरातल पर गड्ढे बन जाते हैं।
क्या आपने तारों वाले, खुले आकाश में, एक ओर से दूसरी ओर तक फैली चौड़ी सफ़ेद पट्टी की तरह, एक चमकदार रास्ते को देखा है? यह लाखों तारों का समूह है। यह पट्टी आकाशगंगा (मिल्की वे) है। हमारा सौरमंडल इस आकाशगंगा का एक भाग है। प्राचीन भारत में इसकी कल्पना आकाश प्रकाश की एक बहती नदी से की गई थी। इस प्रकार इसका नाम आकाशगंगा पड़ा था। आकाशगंगा करोड़ों तारों, बादलों तथा गैसों की एक प्रणाली है। इस प्रकार की लाखों आकाशगंगाएँ मिलकर ब्रह्मांड का निर्माण करती हैं। ब्रह्मांड की विशालता की कल्पना करना अत्यधिक कठिन है। वैज्ञानिक अभी भी इसके बारे में अधिक से अधिक जानकारी एकत्र करने में जुटे हैं। इसके आकार के संबंध में हमें कोई जानकारी नहीं है, लेकिन फिर भी हम जानते हैं कि हम सभी इसी ब्रह्मांड का हिस्सा हैं। पृथ्वी सौरमंडल का एक भाग है। हमारा सौरमंडल आकाशगंगा (मिल्की वे) का एक भाग है, जो ब्रह्मांड का हिस्सा है।