उपयोगितावाद की व्याख्या आलोचनात्मक आधार पर कीजिए
उपयोगितावाद यह बताता है कि जब भी दो वर्गों/व्यक्तियों के बीच किसी बात को लेकर टकराव हो और दोनों के अनुसार अच्छा परिणाम लाने के बारे में मतभेद हो। इस समस्या के समाधान हेतु जो सिद्धांत आया उससे उपयोगितावाद कहा जाता है। इस सिद्धांत के अनुसार वही बात स्वीकार की जानी चाहिए जिसमें अधिकतम व्यक्तियों का महत्तम सुख या लाभ निहित हो।
उपयोगितावाद की आलोचना:- यह निर्णायक रूप से किसी कार्य निर्णय विधि के नैतिकता का निर्धारण नहीं कर पाता है। जैसे उपयोगितावाद में नैतिकता की पहचान महत्तम व्यक्तियों के महत्तम सुख से की जाती है। महत्तम सुख अल्पकालिक अथवा दीर्घकालिक हो सकता है, हालांकि दीर्घकाल में सुख की प्राप्ति होगी या नहीं होगी यह निश्चित नहीं है। इस विचारधारा का यह प्रमुख आलोचनात्मक बिंदु है, जिसके अनुसार दीर्घकाल में सुखों का वास्तविक आकलन नहीं लोचनात्मक किया जा सकता है।
उपयोगितावाद बहुमत की तानाशाही:- उपयोगितावाद महत्तम लोगों के महत्तम सुख की विचारधारा पर आधारित है। अर्थात महत्तम व्यक्तियों से अर्थ बहुमत के सुख से लगाया जाता है। यदि किसी देश, क्षेत्र या समूह में किसी खास जाति, संप्रदाय या धार्मिक वर्ग के व्यक्तियों की संख्या अधिक हो या वे बहुमत में हो तो ऐसी स्थिति में अल्पसंख्यकों के हितों को सुरक्षा नहीं मिल पाएगी।
सुखवाद का विरोधाभास:- इस विचारधारा का प्रतिपादन सिजविक द्वारा किया गया। इस सिद्धांत के अनुसार यदि मानव किसी कार्य से पूर्व ही सुख के मनोविज्ञान से कार्य करने जाता है, तो उसे सुख की प्राप्ति नहीं होगी। जैसे – क्रिकेट खेलने जाने वाला व्यक्ति पूर्व से ही मनोवैज्ञानिक आधार पर यह सोच ले कि वह सुख प्राप्ति हेतु क्रिकेट खेलने जा रहा है। ऐसी स्थिति में वह प्रत्येक गेंद पर सुख की आकांक्षा करेगा, जिससे उसे सुख की प्राप्ति नहीं हो पाएगी। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि हालांकि उपयोगितावाद में अधिकतम लोगों के महत्तम सुख का सिद्धांत निहित है परंतु किसी चरम समुदाय के अधिकता की स्थिति में इसके दुरुपयोग की संभावना भी जताई जाती है।