उदारीकरण के युग में संघ – राज्य संबंध
उदारीकरण के युग में भारतीय राजनीतिक व्यवस्था में संकेतात्मक नियोजन अपनाया गया, जिसमें निजीकरण एवं उदारीकरण को बढ़ावा दिया गया। इसलिए राज्य की भूमिका में परिवर्तन आया। अब राज्य की भूमिका नियंत्रण की बजाए, निजी उद्योगों को बढ़ावा देने वाली हो गई है। राज्य के द्वारा वाणिज्यिक गतिविधियों को निजी क्षेत्रों के प्रबंधन हेतु सौंपा गया तथा राज्य की भूमिका सामाजिक क्षेत्रों में भी प्रभावी हुई | उदारीकरण के युग में योजना आयोग की परिवर्तित भूमिका के कारण संघ एवं राज्यों के मध्य योजना आयोग की भूमिका को लेकर होने वाले विवाद समाप्त हो गए और राजकोषीय प्रबंध के मुद्दे को लेकर संघ एवं राज्य सरकारों के बीच आपस में सहयोग होने लगे।
वर्ष-1990 के उपरांत अधिकांश राज्यों के राजकोषीय प्रबंध अत्यधिक खराब थे। राज्य सूची के विषय जैसे-बिजली, सिंचाई एवं परिवहन में सुधारों की सख्त आवश्यकता थी। इसके लिए संघ एवं राज्यों के बीच आपस में सहयोग भी हुए। वित्त आयोग के द्वारा बेहतर राजकोषीय प्रबंध के आधार पर भी राज्यों को सहायता प्रदान की गई और राज्यों की राजनीति में विकास का मुद्दा प्राथमिक होने लगा। उदारीकरण इस युग में भारतीय संघीय व्यवस्था के समक्ष नई चुनौतियां उत्पन्न हो रही हैं, क्योंकि अब प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आकर्षित करना राज्यों का दायित्व है और उन्हीं राज्यों में ज्यादा निवेश आकर्षित होंगे, जहां बेहतर आधारभूत संरचनाएं हैं। इसलिए उदारीकरण के बाद महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश एवं गुजरात जैसे राज्यों ने उदारीकरण का अधिकतम लाभ प्राप्त किया। जबकि दूसरी ओर भारत के सबसे पिछड़े और विशाल राज्य जैसे- उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, उड़ीसा एवं राजस्थान के क्षेत्रों में पर्याप्त निवेश नहीं हुआ। इसलिए ये राज्य आर्थिक विकास के दौड़ में पिछड़ते चले गए।
परिणामस्वरुप उदारीकरण के बाद भारत के अमीर व गरीब राज्यों के मध्य खांई बढ़ रही है। यद्यपि वित्त आयोग के द्वारा अभी भी भू-भाग व जनसंख्या के आधार पर लगभग 50 प्रतिशत पैसों का आवंटन होता है, परंतु यह आवंटन पिछड़े राज्यों की स्थिति ठीक करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं। यद्यपि उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने विकास के मुद्दे पर प्रभावी बल प्रदान किया है और कुछ पिछड़े राज्य विशेष दर्जे की मांग कर रहे हैं, जैसी स्थिति उत्तर- र – पूर्वी राज्य सिक्किम और हिमाचल प्रदेश की है। क्योंकि इन राज्यों को संघ सरकार के द्वारा 90 प्रतिशत अनुदान व 10 प्रतिशत ऋण प्रदान किया जाता है। गठबंधन सरकारों के दौर में क्षेत्रीय दलों की भूमिकाएं अत्यधिक महत्वपूर्ण हो गई थीं, जिससे क्षेत्रीय दल संघ सरकार से अधिकतम आर्थिक सहायता प्राप्त करने का प्रयत्न करते हैं। कई क्षेत्रीय दलों ने विकास की राजनीति को प्राथमिकता भी प्रदान की है। इसलिए उदारीकरण के युग में एक ओर भारतीय संघीय व्यवस्था के लिए नया अवसर है कि वे आर्थिक विकास के मार्ग पर आगे बढ़ें, परंतु बढ़ती क्षेत्रीय विषमता भी एक बड़ी चुनौती है।