उत्तर भारत के मैदान के अनुदैर्ध्य विभाजन
प्लीस्टोसीन कालखंड से लेकर होलोसीन कालखंड तक प्रायद्वीपीय पठार के उत्तरी किनारे की नदियों एवं हिमालयी नदियों ने टेथीस भू-सन्नति में अवसादों का निक्षेपण किया जिससे प्रायद्वीप एवं हिमालय के मध्य विश्व का सबसे बड़ा जलोढ़ मैदान विकसित हुआ, जिसे सिन्धु-गंगा-ब्रह्मपुत्र का मैदान कहा जाता है। उत्तर भारत के मैदान का अनुप्रस्थ एवं अनुदैर्ध्य रूप में विभाजन किया जाता है। अनुप्रस्थ विभाजन में इसे सिन्धु गंगा तथा ब्रह्मपुत्र नदी के मैदानों में वर्गीकृत किया जाता है। अनुदैर्ध्य विभाजन में उत्तर भारत के मैदान को भावर, तराई, बांगर और खादर के रूप में वर्गीकृत किया जाता है, इसे निम्न प्रकार समझा जा सकता है।
नदियों द्वारा 300M की समोच्च रेखा के सहारे मोटे-मोटे कंकड़, पत्थर, गोलाश्म तथा बजरी आदि का बजरी आ जमाव जलोढ़ शंकु के रूप में करते हुए, विकसित क्षेत्र भावर कहलाता है।
150M की समोच्च रेखा के सहारे नदियाँ अपने साथ लाये गए महीन निक्षेपों का जमाव करती हैं, यह निक्षेप जलोढ़ पंक के रूप में पाया जाता है, जिससे तराई प्रदेश का विकास हुआ है।
75M की समोच्च रेखा द्वारा तराई से पृथक पुरातन प्लीस्टोसीन कालीन नदियों के बाढ़ का मैदान बांगर कहलाता है।
नदी तटबंधों से संलग्न वह नवीन जलोढ़ मैदान जिसमें नदियाँ प्रत्येक बाढ़ के समय अपने द्वारा लाए गए नवीन अवसादों का जमाव करती हैं, उसे खादर कहते हैं।
इस प्रकार कहा जा सकता है, कि उत्तर भारत का मैदान विश्व के सबसे बड़े जलोढ़ मैदानों से एक है, जोकि भारत का खाद्यान भण्डार कहलाता है, यह भारत की लगभग 50% जनसंख्या का आवास स्थल तथा लोगों के जीवन यापन का आधार है।