उच्चतम न्यायालय का निष्पक्ष आलोचना
प्रत्येक नागरिक को न्यायालयों के आचरण पर निष्पक्ष आलोचना के नाम पर टिप्पणी करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। यदि ऐसा होगा तब न्यायिक संस्था का कोई औचित्य ही नहीं रह जाएगा। जब कोई व्यक्ति किसी लंबित मुकद्दमे के बारे में अशोभनीय टिप्पणी करता है और इसके उपरांत वह नोटिस प्राप्त करता है, तो नोटिस प्राप्त कर्त्ता यह बयान देता है कि इस नोटिस को भेजने का उद्देश्य आलोचना को दबाना और असहमति का मुंह बंद करना है तथा उन लोगों को तंग करना है, जो उससे असहमत हैं। अतः यह न्यायिक संस्था पर सीधा प्रहार माना जाता है, मात्र किसी वैयक्तिक न्यायाधीश के आचरण पर ही नहीं ।