आपातकालीन शक्तियों की आलोचना
आलोचकों के अनुसार, आपातकाल का प्रावधान भारतीय संघीय व्यवस्था के विरुद्ध है, क्योंकि इससे संघीय शासन, एकात्मक शासन रूप में कार्य करने लगता है। आपातकाल के आधार पर ही आलोचकों ने कहा कि भारतीय संविधान मूलतः एकात्मक है, जिसमें संघात्मक शासन के कुछ गौंण लक्षण विद्यमान हैं। यह राज्यों की स्वायत्तता के विरुद्ध है, क्योंकि राज्य को संविधान में प्राप्त शक्तियां निरर्थक बन जाती हैं। राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान व्यक्ति के मूल अधिकारों को भी स्थगित कर दिया जाता है, जो एक लोकतांत्रिक देश के लिए अनुचित है।
कुछ आधारों पर आपातकाल का बचाव भी किया जा सकता है। आपातकाल का प्रावधान सामान्य प्रावधान नहीं है, बल्कि यह एक आपवादिक स्थिति है, जिसका यदा-कदा ही प्रयोग किया जाता है। यह उल्लेखनीय है कि द्वित्तीय विश्व युद्ध के दौरान यूरोप के कई लोकतांत्रिक देशों में भी आपातकाल का प्रयोग किया गया था। भारत में वित्तीय आपातकाल का प्रयोग आज तक नहीं किया गया। इसलिए संविधान सभा में डॉ. अंबेडकर ने कहा था कि आपातकाल का प्रावधान एक कड़वी दवाई की भांति हैं, जिसका प्रयोग केवल अंतिम स्थिति में किया जाएगा, जब अन्य विकल्प मौजूद न हों।
आपातकाल की घोषणा के बाद इसके समय को बढ़ाने के लिए संसद के समर्थन की आवश्यकता होती है। इसलिए कार्यपालिका के द्वारा आपातकालीन शक्तियों का दुरुपयोग नहीं हो सकता और वर्ष-1975 में राष्ट्रीय आपातकाल की शक्तियों के दुरुपयोग के बाद इसके समर्थन के लिए विशेष बहुमत की आवश्यकता होती है तथा उच्चतम न्यायालय के बोम्मई वाद के निर्णय के बाद राष्ट्रपति शासन के दुरुपयोग पर भी प्रभावी प्रतिबंध लग गया है। वर्तमान में क्षेत्रीय दल अत्यधिक शक्तिशाली होते जा रहे हैं, जिससे इसके दुरुपयोग की संभावनाएं न्यूनतम होती जा रही हैं।