अरहर (Pigeon Pea)
वानस्पतिक नाम : केजनस केजान (Cajanus Cajan)
- अरहर को Red Gram के नाम से भी जाना जाता हैं |
- अरहर की फसल उगाने से मृदा उर्वरता में वृद्धि होती हैं क्योंकि इसकी पतियाँ झड़कर जमीन पर गिर जाती हैं और मृदा में मिल जाने पर खाद का कम करती हैं
- अरहर, चना के बाद उगाई जाने वाली दलहनी फसलों में दूसरा स्थान रखती हैं| यह भारत की एक मुख्य दलहनी फसल हैं
- हमारे देश में अरहर का क्षेत्रफल दलहनी फसलों के कुल क्षेत्रफल का5% हैं तथा उत्पादन, कुल दलहन उत्पादन का लगभग 15.5% है|
- विश्व के विभिन्न देशों में अरहर की खेती करने वाले देशों में भारत का प्रथम स्थान हैं
- अरहर का क्षेत्रफल तथा उत्पादन की दृष्टी से दानों में चने के बाद दूसरा स्थान हैं
- भारत में अरहर का सबसे अधिक क्षेत्रफल वाला राज्य महाराष्ट्र हैं | दूसरा स्थान कर्नाटक तथा तीसरा स्थान आन्ध्र प्रदेश का हैं
- भारत के कुल अरहर उत्पादन का लगभग 73% भाग महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश तथा कर्नाटक से प्राप्त होता हैं |
- भारत में सबसे अधिक अरहर उत्पादन करने वाला राज्य महाराष्ट्र है दूसरा स्थान उत्तर प्रदेश तथा तीसरा स्थान कर्नाटक का हैं
- भारत में कुल अरहर उत्पादन का लगभग 20% उत्पादन उत्तर प्रदेश से प्राप्त होता हैं
- अरहर में प्रोटीन की मात्रां9% पायी जाती हैं |
- अरहर के बीज में लोहा तथा आयोडीन भी पायी जाती है|
- इसके बीज में लायसी, टाइरोसेन, सीसटिन और आरजिनिन नामक अमीनों अम्ल भी पाये जातें हैं |
- BDN-1, ICPL-87, PT-221, पूसा-83, पूसा-84, पूसा-85, शवेता तथा विशाखा-1 अरहर की उन्नत किस्मे हैं |
- JA-3, किस्म मध्य प्रदेश के लिए उपयुक्त हैं | इसका विकास NO-148 X GWALIOR-3 के संकरण से किया गया हैं |
- BR-183, बिहार में Double Croping के लिए उपयुक्त है
- S-20, किस्म का विकास सन 1976 में Kanke-1 X B-7 के Cross से किया गया हैं| यह किस्म बंगाल के लिए उपयुक्त हैं
- ICPH-8, अरहर की प्रथम संकर किस्म हैं जो ICRISAT हैदराबाद द्वारा निकली गई गई
- ICPH-15, अरहर की एक अन्य संकर किस्म हैं
- ICPL-151, (जाग्रति) अरहर की किस्म भी ICRISAT, हैदराबाद द्वारा विकसित की गई हैं
- प्रभात, अमर तथा T-21 अरहर की किस्मे कानपूर द्वारा विकसित की गई है
- पूसा अगेती, BS-1, मुक्त एवं शारदा अरहर की किस्मों का विकास IARI, नई दिल्ली द्वारा विकसित किया गया हैं
- अरहर की फसल में तीन सिचाई करना आवश्यक रहता हैं ब्रांचिंग अवस्था (बुआई से 30 दिन बाद), पुष्पावस्था (बुआई से 70 दिन बाद) तथा फली बनते समय (110 दिन बाद) फसल में नमी की कमी नहीं होनी चाहिए |
- अरहर के फल को Pods कहा जाता हैं
- अरहर की जड़ Tap Root प्रकार की होती है|
- भरी वर्षा वाले क्षेत्रों में अरहर की खेती नहीं की जा सकती हैं
- अरहर बहुवर्षीय फसल हैं | परन्तु इसको प्राय: एक वर्षीय फसल के रूप में ही उगाते हैं
- अरहर की अगेती जातियाँ जैसे- उपास-120, प्रभात, आदि 120 दिन में ही पक कर तैयार हो जाते हैं
- अरहर के फूल में प्राय: स्व-परागण (Self-Pollination) होता हैं | कभी-कभी पर-परागण (Cross-Pollination) भी हो जाता हैं |
- अरहर की पत्तियाँ एकान्तर क्रम वत्रिपूर्ण (Trifoliate) होती हैं |
- अरहर में पुष्प द्विलिंगी, असीमित तथा मटर कुल के होतें हिं |
- अरहर की बहार किस्म बन्ध्यता विषाणु रोधी हैं |
- अरहर की नवीन विकसित किस्में हैं : मालवीय विकल्प, दुर्गा, आज़ाद K-9, वमबन-1, वमबन-2, (VRC-4), वमबन-3, APK-1, TS-2, IPU 94-1, आशा हैं|